मेरा यूँ ही कह जाना बहुत कुछ
और वो तेरा चुप रह जाना
मेरे सवालों का वो न थमने वाला सिलसिला
और तेरा जवाब में यूँ मुस्कुरा जाना
मेरा ख्यालों में सोचना तुझे
और तेरा ख्वाबों में आ जाना
मेरी ढेरों शिकायतें तुझसे
और तेरा मेरे हर शिकवे को
नाजो से उठाना
ये तेरी हर अदा
अदा भी है
और सजा भी
Thursday, May 6, 2010
Monday, April 19, 2010
वो हुनर
वो हुनर नही मालूम मुझे
की जिससे
तुझे रोक लू
या की
तेरी यादों की घटरी को भी
तेरे साथ ही कर दूँ रुखसत
अपनी अमानत की पोटली से निकाल कर
मैंने तो धड़कने अत कर दी तुझे
मगर वो अदा नही मुझमे
की तेरे दिल को बांध कर रख सकू
अपनी रवानगी तक
मेरी चाहत हमेशा जुडी रही तेरे साथ से
और तेरी चाहत अक्सर मुडती रही किसी
अंजन मोड़ की तरफ
तू सागर था
मैं थी दरिया
तेरे करीब आते आते यूँ फांसला बढा
कि सागर में दरिया मिल न सका
और दरिया;;;;;;;;;;;;;;;;दरिया भी न रहा
की जिससे
तुझे रोक लू
या की
तेरी यादों की घटरी को भी
तेरे साथ ही कर दूँ रुखसत
अपनी अमानत की पोटली से निकाल कर
मैंने तो धड़कने अत कर दी तुझे
मगर वो अदा नही मुझमे
की तेरे दिल को बांध कर रख सकू
अपनी रवानगी तक
मेरी चाहत हमेशा जुडी रही तेरे साथ से
और तेरी चाहत अक्सर मुडती रही किसी
अंजन मोड़ की तरफ
तू सागर था
मैं थी दरिया
तेरे करीब आते आते यूँ फांसला बढा
कि सागर में दरिया मिल न सका
और दरिया;;;;;;;;;;;;;;;;दरिया भी न रहा
Monday, April 5, 2010
जाने क्यों
जाने क्यों तेरी आँखों में अपने लिए नजर तलाशती हूँ
जाने क्यों मैं किराये के मकान में घर तलाशती हूँ
पत्थर तो होते है आखिर पत्थर होई
फिर क्यों कर मैं उनमे रहबर का असर तलाशती हूँ
हाथ की लकीरे क़दमों के यूँ खिलाफ हो गई है
सजा ए जिंदगी मुकरर कर
बाकी सजाये मुआफ हो गई है
तेरी चाहतों का भी हिज्र है
और मेरी मंजिले भी हिजाब में
तक़दीर की बेवफाई का आलम यूँ है की
बाहर मौसम बहारों का है
और मेरे सारे फूल पड़े है
किसी किताब में
Monday, March 22, 2010
तेरे प्यार का अहसास
जब भी मेरे मन की तन्हाई में
तेरे प्यार की महफ़िल सजती है
जिंदगी नए सिरे से सवरती है
ओस की बूंदों सी
सीली रहती मेरी आँखों पर
जब तेरे चेहरे की चमक पड़ती है
कुछ इस तरह बदलता है मौसम
कि कोहरा छंट जाता है तब
और धुप सी खिलने लगती है
मेरे ख्वाबों की बंजर जमीं पर
जब तेरे जज्बातों की खाद पड़ती है
फिर बिन सावन के आती है
मिटटी से सौंधी खुशबू
और पतझड़ में भी
हरी भरी फसल खिलने लगती है
मेरी ख्वहि९शोन को
जब छूता है तेरा अहसास
रूह तलक भीग जाती हूँ मैं
तेरे प्यार की बारिश में
जैसे सूनी पड़ी किसी बगिया को
माली ने महका दिया हो
पंछी जिन पेड़ो का रास्ता भूल गए थे
उन पेड़ो को जैसे आज किसी ने चेह्का दिया हो
ये फ़साने नही है मेरी मोहब्बत के महज
ये मेरी आँखों में महफूज
अमानत है उन अश्को की
जो कभी तुझसे बिछड़कर बहे
कभी तेरे न मिलने से छलके
तेरे रस्ते और मंजिलों का
इल्म नही है मुझे
इन्तहा है तो इस बात की
कि आज भी मेरे दिल की
हर गली जाती है
तेरे प्यार के घर से गुजर के
Sunday, January 3, 2010
प्रेम का अक्स
यूँ ही नही हूँ मैं तन्हाईओं से खफा
और महफ़िल से रुसवा
ये वजह है..
तेरा एहसास
जो
मेरी रूह से रुखसत होता नही
और उस पर
तेरे प्रेम का अक्स
जो आकर कहता है मुझसे
कि ..
बिता हुआ लम्हा हूँ मैं
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